Tuesday, August 23, 2011

खुला पत्र

प्रिय बहिन जी उर्फ़ दीदी,
हम अज्ञानी, अनपढ़, जनता को जिनके ऊपर २०० सालो तक अंग्रेजो ने राज़ किया इतनी अंग्रेजी तो आ गयी है की West को हिंदी में पश्चिम कहा जाता है | मेरी यह बात उस बिल को लेकर है जिसमे आपने west bengal का नाम बदल कर पश्चिम बंगा रखने का सोचा है| इस मूर्ख जनता को और ज्यादा मूर्ख बनाने के अतिरिक्त आप नेताओ के पास कुछ काम नहीं है? सत्ता में आते ही आपने सबसे बड़ा वादा जो किया वो था अपने प्रान्त West Bengal का नाम बदलना और नए नाम के जरिये उसे नयी पहचान दिलाना| आपने तो फिर से इस सीधी साधी  जनता को बेवकूफ बनाने का सोचा है|

अब आप सोच रही होंगी की मैं क्यों यह सब बोल रहा हु? मैं तो west bengal से हूँ भी नहीं, लेकिन मैडम जी मैं हिंदुस्तान से तो हूँ | राजस्थान में पैदा हुआ, गुजरात से पढाई की, कर्नाटक में अपनी पहली नौकरी की और अब देश की राजधानी दिल्ली में हूँ, बंगाल से तो रिश्ता अपने आप ही बन गया इन मायनो में | आपने भी इन नाम बदलने वाले , साफ़ पानी दिलवाने वाले, बिजली दिलवाने वाले वादों के जरिये आखिरकार सत्ता तो पा ही ली, बधाई हो आपको | 

तो अब Bay of Bengal को Bay of Paschim Banga कहा जायेगा? या Royal Tiger of Bengal को Royal Tiger of Paschim Banga कहा जायेगा | वैसे मैं अगर गलत नहीं हूँ तो आपने ही अपने भाषण में कहा था की इस प्रान्त का नाम बदलने की ज़रुरत २ मुख्य कारणों से है. पहला यह की West Bengal शब्धकोष (dictionary) की गणित में बहुत बाद में आता है तो प्रस्तुतिकरण के दौरान तब तक श्रोता ऊब जाते हैं | दूसरा कारण जो आपने बताया था उसके अनुसार यह प्रान्त पूर्व दिशा में है तथापि इसका नाम "West Bengal" है जो की ऐतिहासिक कारणों की वजह से है | 

किन्तु दीदी मेरा प्रश्न यह है की पश्चिम बंगा नाम रखने से क्या यह राज्य पूर्व से पश्चिम में आ जायेगा या फिर हमारा दिशा ज्ञान एक भ्रम मात्र है जिसे हमे बदलना होगा |

आपका ज्यादा समय न लेते हुए मैं इस पत्र को समाप्ति की और ले जाते हुए ख़त्म करता हूँ और आशा करता हूँ की आपके नेतृत्व में यह प्रान्त खूब फले फूले.

जय हिंद

Tuesday, January 5, 2010

गरीबी !!!

कुछ समय पहले इ-मेल में एक लतीफा पढ़ा था , जिसमे अध्यापक अपने विद्यार्थियों को गरीब आदमी पर निबंध लिखने को बोलती है। एक छोटी लड़की जो की अमीर परिवार से होती है, निबंध कुछ इस तरह लिखती है - गरीब वो होता है, जिसका ड्राईवर गरीब हो, जिसकी आया गरीब हो, जिसका माली भी गरीब हो, जिसके पास २ BMW, 2 Merc, 2 Porsche की जगह ये गाड़ियाँ सिर्फ १-१ ही हो।
इसी को सोचकर मेरे दिमाग ने सोचा कि सिर्फ वो आदमी ही गरीब क्यों है? एक इंसान (पढ़े योगेश) जिसकी तनख्वाह ४० हज़ार से कम है और उसके ऊपर ३ क्रेडिट कार्ड के बिल हैं जिनका कुल योग 34 हज़ार है, उसके ऊपर दोस्तों से लिए गए उधार के 20 हज़ार बकाया है, घर का किराया और अन्य घर खर्च मिलाकर 15 हज़ार हैं। और इन सबसे बढ़कर उसने अपने भूतकाल में जो भविष्य को सुखद बनाने के लिए पोलिसियाँ ली थीं उनके 18 हज़ार भी तो देने हैं। इस बेचारे आदमी को गरीब न कहे तो क्या कहे।( ध्यान रहे इन सब खर्चो में रोज़ मर्रा के होने वाले खर्च शामिल नहीं किये गए हैं, जैसे कि चलचित्र देखना, पेट्रोल खर्च, दूरभाष पर होने वाला खर्च इत्यादि) और दुनिया बोलती है IT अभियंता बहुत अमीर होते हैं।
कोई है जो इसे गरीबी रेखा से नीचे जीने वाला प्रमाण पत्र दिलवा दे ? नहीं तो कोई दयावान आकर अपनी दया कि कुछ मुद्रा इसके ऊपर लुटा दे ?

Thursday, September 3, 2009

बजट की घोषणा और मार्केट की प्रतिक्रिया

जुलाई को शेयर मार्केट अचानक से बहुत तेज़ी से लुढ़क गया जैसे ही हमारे वित्त मंत्री ने बजट पेश किया। मार्केट ८६९ अंक नीचे जाकर धूल चाटने लगा यह अब तक का बजट के दिन होने वाला सबसे बड़ा पतन था शुरू से ही ऐसा होता आया है कि मार्केट बजट पर तुंरत अपनी प्रतिक्रिया दे देता है, लेकिन ऐसा क्यों? बजट की भाषा और दस्तावेज बहुत ही जटिल होते हैं, निःसंदेह विशेषज्ञ भी उस पर अपनी राय देने में समय लगाते हैं और हमारे प्रिय शेयर तुंरत नीचे ऊपर हो जाते हैं। कुछ तरीके जो की अपनाए जा सकते हैं , इस प्रकार की मुश्किल घड़ी के लिए -
  • सरकार को मार्केट और आम जनता को बताना होगा की बजट लोक नीतियों की घोषणा करने का मंच नही है, जो की आर्थिक सुधार से सम्बंधित हों।
  • कुछ समय पहले ही हमारे देश के सबसे बड़े बैंक (रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ) ने तय किया कि वो मोद्रिक कार्यवाही से सम्बंधित सूचनाओ (जैसे कि सीआरआर, एससीआर, रेपो दर) को नीतिगत घोषणाओसे हटा कर उन्हें वर्ष में बार घोषित करेंगी जो कि वो पहले अर्धवार्षिक करती थी जल्दी जल्दी घोषणाएं होने से बाज़ार का रुख मोद्रिक नीतियों कि तरफ़ कम हो जाता है। तो ऐसी ही व्यवस्थता बजट के समय लागू करनी चाहिए।
  • विनिवेश (Disinvestment) और सीधा विदेशी निवेश (Foreign direct Investment) घोषणाएं पहले से ही पुनः स्थापित होनी चाहिए ताकि मार्केट को प्रतिक्रिया का यथेस्ट समय मिल सके |
  • शेयर मार्केट को समझना चाहिए की विनिवेश कोई तुंरत होने वाली क्रिया नहीं है. राजनीतिक इच्छा के अलावा साझेदार, प्रबंधकर्ता (regulator) की स्वीकृति समय लेती है |
मार्केट के क्या सोचा या ऐसी क्यों प्रतिक्रिया दी?
  • अभी की केंद्रीय सरकार पिछले वाले कार्यकाल की सरकार से ज्यादा स्थिर है और सहयोगी पार्टियाँ भी सुधार के विरोधी नहीं हैं |
  • इस वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण ने अपेक्षा की रेखा को और ऊंचा उठा दिया| इसके अनुसार विनिवेश के लिए काफी बड़ा लक्ष्य निर्धारित किया था |
  • सर्वेक्षण बजट के आस पास ही आया और बजट में सुधार की घोषणाओ को कठिन बना दिया|
नए युग में जनता यह जानने में उत्सुक रहती है की हमारे वित्त मंत्री क्या कर रहे हैं, उनके दिमाग में क्या विचार आ रहे हैं, इत्यादी | इसलिए सबसे अच्छा तरीका है की जनता को साक्षर बनाया जाये ताकि वो बजट घोषणाओ, आर्थिक सुधारो और मार्केट प्रतिक्रिया में सम्बन्ध को समझ सके और कोई गलत फैसला न ले लें |