Sunday, April 5, 2009

जागो या सोजा रे --

जागो रे ! ! के जागरूक नागरिक बनकर मैंने ऑनलाइन प्रपत्र भर दिया और अपने दोस्तों को भी इस बारे में बता दिया। वेब दुनिया का सहारा लेकर ऑरकुट पर भी २७० लोगो को इसका निमंत्रण भेज दिया (जागरूक नागरिक :))। घर पर आलसी पराग भाई और उज्जवल (दोनों काल्पनिक नाम) से लेकर प्रजातंत्र में विश्वास रखने वाले अभिषेक भाई और वित्त में निपुण वैभव (दोनों काल्पनिक नाम) ने भी रूचि दिखाई। बस फिर क्या था भर दिए प्रपत्र और चुनाव आयोग के समक्ष प्रस्तुत कर दिए।
यह बताने की ज़रूरत नही की यह सरकारी काम था तो एक बार जाने से तो काम बनता नही। हमे दो चक्कर काटने पड़े और अंततः प्रपत्र प्रस्तुत हो गया। मज़े की बात यह थी की निवास स्थान के प्रमाण के तौर पर हम सबने एक ही किराये का करार सपुर्द किया था और वैभव को छोड़ कर उसमे किसी का भी नाम नही था :P २० दिन बाद अपना क्रमांक मिलान करने के लिए पुनः बुलवाया गया।
इतना बड़ा काम करने के बाद सभी प्रसन्न थे। ख़ास कर उज्जवल ( जो घर से बाहर सिर्फ़ कार्यालय या किसी सम्मलेन में भाग लेने के लिए ही निकलता है) उस दिन घर पर पकोडा दावत रखी गई :)
यह सही है की इस जागने की ( चुनाव में मत डालने के लिए ) शुरुआत मैंने की थी किंतु हम सबमे सबसे ज्यादा जागरूक थे अभिषेक भाई। वो हमे नियमित रूप से याद दिलाते रहते थे की २० दिवस बाद हमे पुनः वहां जाना है, अपना क्रमांक पता करने। २० दिनों बाद अभिषेक भाई अकेले ही चुनाव कार्यालय गए, ३ घंटे घनी धूपमें खड़े रहे (वो जादू नही थे जो उन्हें धूप से उर्जा मिलती रहे), अंग्रेज़ी और हिन्दी का प्रयोग करते हुए अपनी परेशानी और आने का कारण लोगो को समझाते रहे जिनको हिन्दी भाषा का ज्ञान नही था। किंतु वही जो सरकारी कार्यालयों में होता है। दोपहर के खाने का अंतराल, २ घंटे के लिए...। उन्हें वापस आना पड़ा। उन्होंने हार नही मानी और अगले दिन फिर से गए, अभी भी विधि ने उनकी परीक्षा ली और उस दिन अंतराल जल्दी हो गया। दोनों बार वो अपनी मंजिल से मात्र २ कदम दूर थे। कोई अन्य होता तो हार मान लेता लेकिन अभिषेक भाई पुनः गए और इस बार अपनी मंजिल तक पहुँच ही नही क्रमांक भी लेकर आए, लेकिन विधि......
उनका नाम मतदाता सूची में नही था :( सिर्फ़ उनका ही नही हमारे परम मित्र पराग का नाम भी नही था। तीन लोग मैं, उज्जवल और वैभव अपना नाम सूची में लिखवाने में कामयाब हुए थे।
अब हम तीनो को अपने छायाचित्र के लिए विभाग में जाना था। पराग भाई भी बहुत उदास थे उन्होंने "जागो रे" की तरह "सोजा रे" नामक वेबसाइट बनाने की घोषणा कर डाली और प्रजातंत्र को गाली देते हुए सो गए।
आज सुबह जल्दी उठकर मैं और उज्जवल चुनाव कार्यालय की और गए (वैभव घर पर अनुपस्थित था तो हम दोनों ने ही जाने का निर्णय किया, जल्दी जायेंगे तो जल्दी पाएंगे यह सोचकर निकल पड़े) आधा रास्ता ही तय किया था कि फिर से देवदूत बनकर अभिषेक भाई ने हमे चेताया कि सोमवार को वो कार्यालय बंद रहता है। बस फिर हम मुह लटकाए अपनी अपनी कर्म-स्थलि की और चल दिए।
पता नही कब हम भी पहचान पत्र बनवा पाएंगे....